जिहाद क्यों?
अब दूसरा प्रश्न उठता है कि आखिर जिहाद क्यों? ६२३ एडी से लेकर आज तक सारे विश्व में मुसलमान 'अल्लाह के लिए जिहाद' के नाम पर करोड़ों निरपराध गैर-मुसलमानों की हत्या क्यों करते आ रहे हैं? प्रेम-शान्ति और भाई चारे के धर्म का दावा करने वाला इस्लाम आखिर इन मासूकों की लगातार हत्याएं करके क्या प्राप्त करना चाहता है? आखिर इस खूनी जिहाद का उद्देश्य क्या है?
इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर और जिहाद का उद्देश्य इस्लाम के धर्म-ग्रंथों-कुरान और हदीसों में सुस्पष्ट दिया गया है। देखए कुछ प्रमाण-
(१) ''तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फितना (उपद्रव) बाकी न रहे और 'दीन' (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह के लिए हो जाए''। (कुरान मजीद ८ः३९, पृ. ३५४)
(२) ''वही है जिसने अपने 'रसूल' को मार्ग दर्शन और सच्चे 'दीन' (सत्यधर्म) के साथ भेजा ताकि उसे समस्त 'दीन' पर प्रभुत्व प्रदान करे, चाहे मुश्रिकों को नापसन्द ही क्यों न हो''। (९ः३३, पृ. ३७३)
(३) पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना के बैतउल मिदरास में बैठे यहूदियों से कहाः ''ओ यहूदियों! सारी पृथ्वी अल्लाह और उसके 'रसूल' की है। यदि तुम इस्लाम स्वीकार कर लो तो तुम सुरक्षित रह सकोगे।'' मैं तुम्हें इस देश से निकालना चाहता हूँ। इसलिए यदि तुममें से किसी के पास सम्पत्ति है तो उसे इस सम्पत्ति को बेचने की आज्ञा दी जाती है। वर्ना तुम्हें मालूम होना चाहिए कि सारी पृथ्वी अल्लाह और उसके रसूल की है''। (बुखारी, खंड ४ः३९२, खंड ४ः३९२, पृ. २५९-२६०, मिश्कत, खंड २ः२१७, पृ. ४४२)।
(४) पैगम्बर मुहम्मद ने अपने जीवन के सबसे आखिरी वक्तव्य में कहाः ''हे अल्लाह! यहूदियों और ईसाइयों को समाप्त कर दे। वे अपने पैगम्बरों की कबरों पर चर्चे (पूजाघर) बनाते हैं अरेबिया में दो धर्म नहीं रहने चाहिए।'' (मुवट्टा मलिक, अ. ५११ः१५८८, पृ. ३७१)
(५) पैगम्बर मुहम्मद ने मुसलमानों से कहा ''जब तुम गैर-मुसलमानों से मिले तो उनके सामने तीन विकल्प रखोः उनसे इस्लाम स्वीकारने या जिजिया (टैक्स) देने को कहा। यहदि वे इनमें से किसी को न मानें तो उनके साथ जिहाद (सशस्त्र युद्ध) करो।'' (मुस्लिम, खं ३ः ४२४९, पृ. ११३७; माजाह, खं. ४ः २८५८, पृ. १८९-१९०)
"The ultimate objective of Islam is to abolish the lordship of man over man and bring him under the rule of the One God. To stake everything you have - including your lives - to achieve this purpose is called Jihad. The Prayer Fasting, Alms giving and Pilgrimage, all prepare you for Jihad (p. 285) "If you are a true follower of Islam, you can neither submit to any other 'Din', nor can you make Islam a partner of it. If you believe Islam to be true, you have no alternative but to exert your utmost strength to make it prevail on earth; you either establish if or give your lives in this struggle". (p. 300)
यानी ''इस्लाम का अन्तिम उद्देश्य मनुष्य के ऊपर से स्वामित्व समाप्त करना और इसे एक परमात्मा (अल्लाह) की अधीनता में लाना है। इसके लिए तुम्हें अपना सब कुछ अपनी जिन्दगी सहित, जो कुछ तुम्हारे पास है, दाव पर लगाना है और इस उद्देश्य को प्राप्त करना जिहाद कहलाता है। नमाज, रोजा, जकात और हज्ज आदि सब तुम्हें इस जिहाद के लिए तैयार करते हैं'' (पृ. २८५)। ''यदि तुम इस्लाम के सच्चे अनुयायी हो तो तुम न किसी अन्य 'दीन' (धर्म) के प्रति अपने को समर्पित कर सकते हो और न तुम इस्लाम को उसका सहभागी बना सकते हो। यदि तुम इस्लाम को सच्चा धर्म मानते हो तो तुम्हें इसे सारे विश्व में फैलाने के लिए अपनी सारी शक्ति लगाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। अतः या तो तुम इसे सारे विश्व में स्थापित कर दो अथवा इस संघर्ष में अपने जीवन का बलिदान कर दो।'' (पृ. ३००)
अतः कुरान, हदीसों एवं मुस्लिम विद्वानों के अनुसार जिहाद के उद्देश्य है-
(१) गैर-मुसलमानों को किसी भी प्रकार से मुसलमान बनाना; (२) मुसलमानों के एक मात्र अल्लाह और पैगम्बर मुहम्मद में अटूट विश्वास करके तथा नमाज, रोजा, हज्ज और जकात द्वारा उन्हें कट्टर मुसलमान बनाना; (३) विश्व भर के गैर-मुस्लिम राज्यों, जहाँ की राज व्यवस्था सेक्लयूरवाद, प्रजातन्त्र, साम्यवाद, राजतंत्र या मोनार्की आदि से नियंत्रित होती है, उसे नष्ट करके उन राज्यों में शरियत के अनुसार राज्य व्यवस्था स्थापित करना और (४) यदि किसी इस्लामी राज्य में गैर-मुसलमान बसते हों तो उनको इस्लाम में धर्मान्तरित कर के अथवा उन्हें देश निकाला देकर उस राज्य को शत प्रतिशत मुस्लिम राज्य बनाना।
अतः जिहाद का एक मात्र अन्तिम उद्देश्य विश्व भर के गैर-मुस्लिम धर्मों, जैसे हिन्दू धर्म, ईसाईयत, यहूदीमत, बौद्धमत कन्फ्यूसियस मत आदि, को नष्ट करके उनके देशों में शरियतानुसार इस्लामी राज्य व्यवस्था स्थापित करना है। इन दोनों में से इस्लाम, धर्मान्तरण की अपेक्षा, इस्लामी राज्य व्यवस्था स्थापित करने को प्रमुखता देता है क्योंकि एक बार इस्लामी सत्ता स्थापित और शरियत लागू हो जाने के बाद गैर-मुसलमानों को पलायन, धर्मान्तरण या मौत के अलावा अन्य कोई विकल्प बचना ही नहीं है। इसीलिए मैें कहता हूँ कि इस्लाम एक धर्म-प्रेरित मुहम्मदीय राजनैतिक आन्दोलन है, कुरान जिसका दर्शन, पैगम्बर मुहम्मद जिसका आदर्श, हदीसें जिसका व्यवहार शास्त्र, जिहाद जिसकी कार्य प्रणाली, मुसलमान जिसके सैनिक, मदरसे जिसके प्रशिक्षण केन्द्र, गैर-मुस्लिम राज्य जिसकी युद्ध भूमि और विश्व इस्लामी साम्राज्य जिसका अन्तिम उद्देश्य है।
निःसंदेह यह अत्यन्त उच्च महत्वाकांक्षी लक्ष्य है जिसके आगे विश्व भर के धर्म आसानी से घुटने नहीं टेकेगें, और कट्टर मुसलमान इस संघर्ष पूर्ण जिहाद को स्वेच्छा से बन्द ही करेंग। अतः मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच अल्लाह के नाम पर 'जिहाद' तब तक चलता ही रहेगा जब तक कि मुसलमान अपने सार्वभौमिक राज्य के समने को नहीं त्यागते।
इसके अलावा, मुस्लिम विद्वान दावा करते हैं। कि जब ''सारी पृथ्वी अल्लाह की है तो दुनिया भर पर राज भी अल्लाह का ही होना चाहिए।'' परन्तु यह उनका बड़ा भ्रम और एक तानाशाही मनोवृत्ति का परिचायक है क्योंकि यही दावा एक हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, यहूदी, पारसी भी कर सकता है कि उसके परमात्मा या गॉड ने सारी दुनियाँ बनाई है। वही सारी सृष्टि का स्वामी है। इसलिए विश्व भर में राज्य व्यवस्था भी उसके धर्मानुसार होनी चाहिए। यदि इस्लाम विश्व भर में राज्य व्यवस्था भी उसके धर्मानुसर ही होनी चाहिए। यदि इस्लाम की तरह, सभी धर्मों वाले यही सिद्वान्त व्यवहार में अपना लें तो विश्व के सभी धार्मिक समुदाय अपने-अपने धर्मानुसार विश्वभर में राज्य व्यवस्था स्थापित करने के लिए दूसरे पंथवालों पर आक्रमण, हिंसा और उनका कत्लेआम ही करते रहेंगे। इससे तो धर्म के नाम पर अधर्म, अन्याया और अत्याचार ही बढ़ेगे। सारे विश्व के लोग आपस में लड़ते ही रहेंगे। सार रूप में जब तक मुसलमान कुरान और हदीसों की उपरोक्त जिहाद की आयतों का पालन करते रहेंगे, विश्व में शान्ति असम्भव है।
जिहाद की विधियाँ
इस्लामी धर्मग्रन्थों में मुसलमानों को अपने तन, मन, धन, जीवन, वाणी, लेखनी एवं सशस्त्र युद्ध द्वारा जिहाद करने के अनेक आदेश हैं। जिहाद की अनेक विधियाँ बतलाई गई हैं जो कि परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं। जिहाद अपनाते समय इस्लाम का हित सर्वोपरि रखा जाता हैं जिहाद अपने लाभ के लिए नहीं बल्कि 'अल्लाह के नाम पर' या 'अल्लाह के लिए' की जाती है। यह दूसरी बात है कि अल्लाह दिखाई नहीं देता है, इसलिए वास्तविक व्यवहार में जिहाद का लाभ कट्टरपंथी मुस्लिम मुल्ला एवं राजनैतिक नेता ही उठाते हैं।
जिहाद की सफलता के लिए, साधन, कार्य प्रणाली, औचित्य-अनौचित्य, मानवता, नैतिकता, निष्पक्षता, परम्परा, संविधान, कानून व्यवस्था का उल्लंघन, सन्धि विच्छेद आति बातों के लिए कोई स्थान नहीं होता है। बस साम, दाम, दण्ड, भेद आदि के द्वारा जिहाद का वांछित उद्देश्य पूरा होना चाहिए। विभिन्न देशों में जिहाद का इतिहास, उपरोक्त कथन की पुष्टि में प्रमाणों से भरा पड़ा है।
मुसलमान विश्व भर में अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने के लिए जिहाद की जो विधियाँ अपनाते हैं उन्हें व्यापक रूप में चार भागों में बाँटा जा सकता है जैसेः
(१) सहअस्तित्ववादी जिहाद; (२) शान्तिपूर्ण जिहाद; (३) आक्रामक जिहाद और (४) शरियाही जिहाद। जिन देशों में मुसलमानों की संखया ५ प्रतिशत से कम, और वे कमजोर होते हैं, वहाँ वे शान्ति, प्रेम भाई-चारा व आपसी सहयोग द्वारा सह-अस्तित्ववादी जिहाद अपनाते हैं; तथा अपने धार्मिक आचरण से प्रभावित करके गैर-मुसलमानों को धर्मान्तरित करने की कोशिश करते हैं। जिन देशों में मुसलमान १०-१५ प्रतिशत से अधिक होते हैं, वहाँ वे शान्तिपूर्ण जिहाद अपनाते हैं। साथ ही ''इस्लाम खतरे में'', मुस्लिम उपेक्षित' आदि का नारा लगाते हैं। साथ ही मुस्लिम वोट बैंक एक-जुट करके देश के प्रभावी राजनैतिक गुट से मिल जाते हैं तथा मुस्लिम वाटों के बदले सत्ता दल को अधकाधिक धार्मक, आर्थिक एवं राजनैतिक अधिकार देने को विवश करते हैं। साथ ही गैर-मुसलमानों को धर्मान्तरित, व उनकी युवा लड़कियों का अपहरण, एवं प्रेमजाल में फंसाकर, चार शादियाँ करके तथा तेजी से जनसंखया दर बढ़ाने का प्रयास करते हैं। आज कल भी 'लव जिहाद राजनैतिक जिहाद का एक मुखय अंग है। भारत के विभिन्न प्रान्तों में लव जिहाद की अनेक घटनाएँ हुई हैं अकेले केरल में पिछले चार वर्षों में ही गैर-मुसलमानों की २८०० लड़कियाँ 'लव जिहाद' के जाल में फंसकर इस्लाम में धर्मान्तरित हो गई हैं। (पायो. ११.१२.२००९)
इस मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के फलस्वरूप मुस्लिम अल्पमत में होते हुए भी बड़ी प्रभावी स्थिति में हो जाते हैं। फिर भी वे वहाँ की मूल राष्ट्र धारा से नहीं जुड़ते हैं। अलगाववाद इस्लाम की मौलिक विशेषता है क्योंकि यह राष्ट्रवाद, प्रजातंत्र, सेक्यूलरवाद और मुसलमानों को स्वतंत्र चिन्तन की आज्ञा नहीं देता है। इतिहास साक्षी है कि पड़ोसी मुस्लिम देशों से अवैध घुसपैठ, आव्रजन (इम्मीग्रेशन) और मुस्लिम जनसंखया विस्फोट के फलस्वरूप विश्व के अनेक गैर-मुस्लिम देश इस्लामी राज्य हो गए हैं। यूरोप व भारत में यह प्रक्रिया आज भी तेजी से चली रही है। जनसंखया विशेषज्ञों के अनुसार २०६० तक भारत में हिन्दू अल्पमत में हो जायेंगे (जोशी आदि-रिलीजस डेमोग्राफी ऑफ इंडिया)
जिन देशों में बहुसंखयक मुस्लिमों का राज होता है, वहाँ वे निःसंकोच आक्रामक जिहाद अपनाते हैं और गैर-मुसलमानों को इस्लाम स्वीकारते, जजिया देने या देश छोड़ने को विवश करते हैं अन्यथा कत्ल कर दिए जाते हैं जैसा कि हम १९४७ से आज तक बंगला देश व पाकिस्तान में बसे हिन्दुओं की स्थिति देख चुके हैं। आज भी लाखों हिन्दू व सिख पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में जजियिा देने का पलायन करने को विवश हो रहे हैं।
इनके अलावा जिन देशों में मुस्लिम जनसंखया ९० प्रतिशत से अधिक होती है, फिर भी वहाँ की राज्य व्यवस्था 'विशुद्ध शरियाही' नहीं होती है तो वे वहाँ अपने सम्प्रदाय/फिरके की शरियाह लागू करने के लिए 'शरियाही जिहाद' करते हैं। सत्तावन इस्लामी देश और सभी मुसलमानों का एक ही धर्मग्रन्थ 'अरबी कुरान' होते हुए भी इस्लामी शरियाह एक नहीं है। विभिन्न फिरकों की अपनी-अपनी शहिरयाह हैं। जैसे सउदी अरेबिया की शहिरयाह- ईरान से भिन्न है, जबकि दोनों ही इस्लामी राज्य हैं। इसीलिए शिया, सुन्नी, बहाबी, अमदिया आदि फिरकों में वैचारिक मतभेद होने के कारण आपस में संघर्ष होते रहते हैं। मुहम्मद अमीर राना के अनुसार ''२००२ तक कश्मीर और अफगानिस्तान में जिहाद करते हुए विभिन्न फिरकों में आपस में दो हजार संघर्ष हुए।'' (गेट वे टू टेरोरिज्म, पृ. २९) पाकिस्तान में १९८० से अब तक ४००० मुसलमान शिया-सुन्नी संघर्ष में मारे गये। (पायो. २९.१२.२००९) अतः विभिन्न प्रकार की जिहाद, न केवल गैर-मुसलमानों के विरुद्ध बल्कि मुस्लिम समुदायों के बीच भी, पैगम्बर मुहम्मद के निधन के बाद से ही, आज तक चली आ रही है।
ससार की बात यह है कि किसी देश में जिहाद की कार्यविधि वहाँ इस्लाम की शक्ति और उद्देश्य के अनुसार बदलती रहती है। जैसे-जैसे मुसलमानों की शक्ति बढ़ती जाती है, सह अस्तित्ववादी शान्तिपूर्ण जिहाद सशस्त्र आक्रामक जिहाद में बदल जाती है। यह नीति पूर्णतया कुरान पर आधारित है जिसे कि मक्का और मदीना में अवतरित आयतों के स्वभाव में अन्तर साफ साफ देखा जा सकता है।
पैगम्बर मुहम्मद के निधन के बाद मुसलमानों के लिए कुरान का यही ओदश है कि वे 'जहाँ कहीं गैर-मुसलमानों को पाऐं इस्लाम या अधीनता स्वीकारने को विवश करें, और न मानें तो उनकी हत्या कर दें। फिर भी विवशतावश, कहीं कहीं मुसलमान कूटनीति के अनुसार शान्तिपूर्ण जिहाद का मार्ग अपनाते हैं। इसीलिए आज विश्व में शान्तिपूर्ण जिहाद से लेकर अत्यन्त आक्रामक जिहाद, अपने विभिन्न रूपों में दिखाई दे रहा है।
भारत में जिहाद क्यों?
इतिहास साक्षी है कि भारत ने न अरेबिया और न अन्य किसी इस्लामी देश पर कभी हमला नहीं किया। फिर भी मुसलमान ६३६ एडी से ही भारत पर लगातार आक्रमण क्यों करते रहे? उसका उत्तर पाकिस्तान के विद्वान अनवर शेख ने अपनी पुस्तमक ''इस्लाम एण्ड टैरोरिज्म'' (पृ. १२१) में सुस्पष्ट दिया हैः ''वास्तव में पैगम्बर मूर्तियों से घृणा नहीं करता था। वह वास्तव में भारतीय संस्कृति और उसके प्रबल धार्मिक प्रभाव का विरोधी था जिसका कि मध्यपूर्व पर भी प्रभाव था और सांस्कृतिक दृष्टि से अरेबिया भारत का एक अंग बन चुका था। इसलिए भारतीय मूल की प्रत्येक वस्तु को अपमानित, अधोपतित एवं नष्ट-भ्रष्ट किया जाना चाहिए।''
उपरोक्त कथन पूरी तरह से सही है क्योंकि इतिहासकार मानते हैं कि इस्लाम-पूर्व अरेबिया में सहिष्णुतावादी भारतीय संस्कृति का प्रभाव था। यहाँ के 'काबा' में अनेक देवी-देवताओं की एक साथ पूजा होती थी जो विभिन्न कबीलों के इष्ट देव थे। इनमें भारतीय देवी-देवताओं की भी पूजा होती थी।
कुरान का प्रसिद्ध भाष्यकार यूसुफ अली लिखता हैः ''यहाँ (अरेबिया में) विभिन्न रूपों में चन्द्रमा की पूजा लोकप्रिय थी.... भारत की तरह सेमिटिक धर्म में भी चन्द्रमा देवता की नर के रूप में पूजा होती थी। इसके विपरीत सूर्य (शमा) को स्त्री रूप में पूजते थे। सुप्रसिद्ध काबा और मक्का के आस पास देवी अल-लाट, देवी अल-उजा (वीनस देवी) और अल-मनात (भाग्य देवी) की पूजा होती थी।'' (दी होली कुरान, पृ. १६१९-२०)
इसी प्रकार रोबर्ट मोरे अपनी पुस्तक ''दी इस्लामिक इनवेजन'', (पृ. २११-२१५) में लिखता हैः ''मैसोपोटामिया एवं टर्की के पहाड़ों से लेकर नील नदी (मिश्र देश) तक चन्द्र देव की पूजा होती थी। दक्षिणी यमन में चन् द्र देव के मन्दिरों के अवशेष्ज्ञ पाए गए हैं। इस्लाम का कलेण्डर चन्द्रमा की गति पर आधारित होता है। अरेबिया में अल-लाट, अल-उजा और अल-मनात को अल्लाह की बेटियाँ माना जाता था।''
वास्तव में पैगम्बर मुहम्मद ने इस भारतीय प्रभाव को अरेबिया में देखा, और वह इस्लाम की स्थापना के बाद से ही यहाँ से भारतीय संस्कृति को नष्ट करना चाहता था। उसे लोगों का भगवा रंग, जो कि भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, के कपड़े पहनना भी सहन नहीं था। हदीस मुस्लिम (खं. ३; ५१७३-७५, पृ. १३७७-७८) बतलाती हैः ''अब्दुला व अमर ने बतलाया कि अल्लाह के रूसल ने मुझे भगवा रंग के दो कपड़े पहने देखा। इस पर उन्होंने कहा ''ऐसे कपड़े अक्सर गैर-मुसलमान पहनते हैं। अतः इन्हें मत पहनो।'' दूसरी हदीस में अब्दुला से पैगम्बर ने पूछाः क्यो ये कपड़े तुम्हारी माँ ने पहनने को दिए'? मैंने कहा; मैं उन्हें धो दूंगा। पैगम्बर ने कहाः उन्हें जला दो''।
इसके अलावा मुसलमानों के लिए भारत ही नहीं, किसी भी गैर-मुस्लिम देश पर हमला करने के लिए किसी कारण को ढूढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है। उनके लिए तो इतना ही काफी होता है कि वह देश इस्लामी राज्य क्यों नहीं है?
भारत में लगातार जिहाद
मुसलमान, इस्लाम के प्रारम्भ से ही, आज तक सम्पूर्ण भारत को एक इस्लामी राज्य बनाने के उद्देश्य से लगातार जिहाद करते चले आ रहे हैं जिसका कि हिन्दू कठोरता से विरोध करते रहे हैं। जय-विजय, पराजय और हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष के इस काल खंड (६३६-२००९) को मुखयतया छः भागों में बांटा जा सकता हैः
१. हिन्दू विजय काल (६३६-७११ एडी); २. पश्चिमोत्तर भारत में संघर्ष काल (७१२-१२०६); ३. आंशिक भारत में मुस्लिम राज्य काल (१२०६-१७०७); ४. हिन्दू-मुस्लिम-ब्रिटिश संघर्ष काल (१७५७-१८५७); ५. स्वतंत्रता आन्दोलन काल (१८५७-१९४७) और ६. स्वातंत्रयोत्तर काल (१९४७-२००९)
१. हिन्दू विजय काल (६३६-७११ एडी) - इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद (५७०-६३२ एडी) और पहले खलीफा अबू बकर (६३२-६३४) के काल में भारत पर कोई जिहादी हमला नहीं हो सका। परन्तु दूसरे खलीफा उमर (६३४-६४४) ने कहा ''अल हिन्द की भूमि पर इस्लाम स्थापित होना चाहिए'' (मुहम्मद इशाक, पृ. २)। उसके आदेश पर ६३६ में समुद्री मार्ग से सबसे प हला हमला उथमान अल थकवी के नेतृत्व में थाने-बम्बई पर हुआ जो कि विफल कर दिया गया। (मिश्रा, हिन्दू रेजिस्टेंस टू अर्ली मुस्लिम इनवेडर्स, पृ. १६) इसी तरह के भरोच और देवल बन्दरगाह पर दो और समुद्री हमले हिन्दुओं ने विफल कर दिए। (मिश्रा, वही, पृ. १६)
खलीफा उमर जो सब जगह इस्लाम की जीत देख रहा था, इस हार से अचम्भिरत हुआ और उसने मकरान (बिलोचिस्तान) के सड़क मार्ग से हमला करने की सोची। मगर इराक के गवर्नर अबू मूसा ने परामर्श दिया कि वह फिलहाल हिन्द के बारे में भूल जाए (मिश्रा, वही, पृ. १७)। इसके बाद तीसरे खलीफा उस्मान (६४४-६५६) ने हमला करने से पहले हिन्द व सिंघ के हालात जानने के लिए हकीम को भेजा जिसने लौटकर परामर्श दिया कि ''एक छोटी सेना वहाँ फौरन मारी जाएगी और बड़ी सेना जल्दी ही भूखों मर जाएगी'' (चचनामा, खं. १, पृ. ५९-६०; मिश्रा वही, पृ. १७) अतः खलीफा ने भारत पर हमला करने का विचार ही छोड़ दिया। चौथे खलीफा अली (६५६-६६०) ने एक दल भेजा। मगर सारी मुस्लिम सेना हिन्दुओं के हाथों मारी गई। (इलियट एवं डाउसन, खं. १, पृ. ११६, मिश्रा वही पृ. १८)। पाँचवो खलीफा मुवैया (६६१-६८०) के काल में सिंध को जीतने के लिए मुसलमानों के सभी ६ हमले हिन्दुओं ने विफल कर दिए (चचनामा, खं. १, पृ. ६१-६२; मिश्रा वही, पृ. १८)
इसे बाद ६९५ में जब अल-हज्जाक इराक का गवर्नर हुआ तो उसने काबुल व जाबुल पर हमले के आदेश दिए। मगर ये आक्रामक भी हिन्दुओं के हाथों पराजिक हुए (मिश्रा वही, पृ. १८)। इस प्रकार मुसलमानों के भारत पर ६३६ से ७१० एडी तक सभी दसों जिहादी हमले विफल रहे।
२. पश्चिमोत्तर भारत में संघर्ष काल (७१२-१२०६)- पश्चिमोत्तर के तीनों हिन्दू राज्यों-सिंघ, काबुल और जाबुल ने लगभग पांच सौ वर्षों तक मुसलमानों से टक्कर लीं। काबुल पराजय के बाद हज्जाज ने सिंघ पर हमला करने के लिए पहले अब्दुला ओर बाद में बुदेल को भेजा। परन्तु ये दोनों ही हिन्दुओं के हाथों मारे गए (चचनामा, खं. १, पृ. ७१-७२, मिश्रा, वही, पृ. १९)। इससे आक्रोशित हज्जाज ने ७११ में अपने दामाद मुहम्मद बिन कासिम को एक बड़ी सेना के साथ विंध पर हमला करने को भेजा। यहाँ ब्राह्मणों के अंध-विश्वास, बौद्धों और उसके वजीर सिस्कार के विश्वासघात के कारण सिंघ नरेश दाहिर संयोगवश युद्ध करते हुए जून ७१२ में मारा गया। उसकी बहादुर लाड़ो रानी ने अपने समस्त आभूषण और सरकारी खजाना हिन्दू योद्धाओं को पुरस्कार में देकर उन्हें युद्ध के लिए उत्साहित किया। परन्तु ७१४ तक सिंघ पूरी तरह पराजित हो गया। नए खलीफा सुलेमान ने द्वेषवश कासिम को बुलाकर जेल में डाल किया, जहाँ वह मर गया (ई. डा. खं.१, पृ. ४३७) कासिम के जाते ही सिंघ के अधिकांश बलात धर्मान्तरित मुसलमान पुनः हिन्दू धर्म में आ गए।
काबुल ओर जाबुल के हिन्दू राजा ६५० से ८६० तक अरबों के साथ कभी हार कभी जीत के साथ संघर्ष करते रहे। परन्तु ८७० में अरबों ने शान्ति संधि के प्रस्ताव के बहाने मिलने पर जाबुल के निहत्थे हिन्दू राजा की धोखे से हत्या कर दी। (ई. डा. खं. २, पृ. १७६-१७८, मिश्रा वही, पृ. ३८)
मगर काबुल के शाही वंश ने सुबुक्तगीन (९७७-९९७) और महमूद गजनवी (९९८-१०३०) से अनेक संघर्ष किए। काबुल के हिन्दू राजा जयपाल ने न केवल सुबुक्तगीन को भारत पर हमला करने से रोका, बल्कि (९८६-९८७) में गजनी पर हमला भी किया। जहाँ कई दिनों तक युद्ध चला तथा जयपाल जीत के कगार पर था और सुबुक्तगीन व मुहम्मद दोनों ही निराश थे। परन्तु यकायक बर्फीली आँधी के कारण विवश हो जयपाल को संधि करनी पड़ी।
सुबुक्तगीन के बाद ९९८ में महमूद गजनी की गद्दी पर बैठा जिसके बारे में डॉ. साचू लिखता हैः ''महमूद के लिए सारे हिन्दू काफिर हैं। वे सभी जहन्नम भेजने योग्य हैं क्योंकि वे लॅटने से इन्कार करते हैं।'' (पी.एन.ओक, भारत में मुस्लिम सुलतान खं.१, पृ. ५९) तथा प्रो. हबीव के अनुसार ''उसने प्रतिज्ञा की ि कवह हर साल हिन्दुोिं पर जिहाद का कुठार चलाएगा।'' (ओक वहीं, पृ. ६१)
महमूद ने अपने राज्यकाल (९९८-१०३०) में भारत पर लूट-खसूट, लाखों हिन्दुओं की निर्मम हत्या तथा हजारों मंदिरों के विनाश के साथ सत्रह हमले किए। इसका राजा जयपाल ने १००१ में दिल्ली, अजमेर, कन्नौज, व कालिंजर के राजाओं की सैनिक सहायता से जबरदस्त विरोध किया। मगर दुर्भाग्य से उसके हाथी के वि दक जाने से सेना में हडबड़ी मच गई व जयपाल बन्दी बना लिया गया। बाद में उसने आत्मग्लानि के कारण आत्महत्या कर ली। (मिश्रा वही, पृ. ४२-४३)। परन्तु जयपाल के पड़-पोते राजा भीमपाल ने महमूद को १०१५ में हराया। लेकिन १०२६ में भीमपाल भी देश रक्षा में शहीद हो गया। संक्षेप में काबुल के इस शाही वंश ने तीस वर्षों तक महमूद का जबरदस्त मुकाबला किया। इसके बाद एक सौ पचास वर्षों (१०३०-११७५) तक अफगानिस्तान में शान्ति रही।
११७५ में, शहाबुद्दीन गौरी जिसकी बौद्ध धर्म और इस्लाम में समान आस्था थी, गद्दी पर बैठते ही सुन्नी मुसलमान हो गया। हालांकि शहाबुद्दीन ने ११७५ में मुलतान जीता मगर ११७८ में गुजरात के चालुक्यों ने उसे हरा दिया। पर उसकी हत्या नहीं की। इसी प्रकार की भूल पृथ्वीराज चौहान ने की। उसे शहाबुद्दीन को पन्द्रह बार हराया (पृथ्वीराज रासौ चन्द्रवरदाई) मगर हर बार उसे माफ करके छोड़ दिया। ११९२ में शहाबुद्दीन ने पृथ्वीराज चौहान पर हमला किया तथा बन्दीकर उसकी हत्या कर दी।
यदि पृथ्वीराज चौहान मुसलमान सुल्तानों की धोखाधड़ी, छल-कपट व विश्वासघात की इस्लामी मानसिकता को जानता होता और उसे हर बार माफ न करके, मार देता तो भारत का आज इतिहास कुछ अलग ही होता। ११९३ में कन्नौज का राजा जयचन्द भी मुसलमानों से पराजित हो गया तथा १२०६ में भारत में पहली बार इस्लामी राज्य स्थापित हुआ।
इस तरह सिंध, काबुल और जाबुल के वीर शिरोमणि हिन्दू राजाओं ने पाँच सौं सत्तर वर्ष तक भारत में इस्लामी राज्य स्थापित नहीं होने दिया। मुसलमानों की अधिकांश विजय छल, कपट और धोखे से हुई न कि वीरता व पराक्रम के फलस्वरूप। यहाँ यह बताना उचित होगा कि यूरोप, अफ्रीका व एशिया के अनेक देश इस्लामी आँधी के पहले १०० वर्षों में ही नतमस्तक हो गए जबकि भारत ५७० वर्षों तक मुस्लिम आक्रान्ताओं को खदेड़ता रहा।
३. आंशिक भारत में मुस्लिम राज्य काल (१२०६-१७०७)- इस काल खं डमें मुसलमानों ने अनेक वंशों ने विभिन्न कालों तक राज कियाः जैसे कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१०), अलाउद्दीन खिलजी (१२९६-१३१६); मुहम्मद बिन तुगलक (१३२६-१३५१); फीरोजशाह तुगलक (१३५७-१३८८); बाबर (१५१९-१५३०); शेरशाह सूरी (१५४०-१५४५); अकबर (१५५६-१६०५); शाहजहाँ (१६२८-१६५८); और औरंगजेब (१६५८-१७०७)।
इन पाँच सौं वर्षों में मुस्लिम सुलतानों ने इ्रस्लामी शरियाह के अनुसार हिन्दुओं पर असीम निर्मम अत्याचार किए। उनका इस्लाम में बलात् धर्मान्तरण एवं सामूहिक कत्ले आत किया, युवाओं को गुलाम बनाया, लाखों स्त्रियों को लूटा, विदेशों में बेचा एवं हजारों मन्दिरों को तोड़ा। इनका प्रमाणिक वर्णन अनेक मुस्लिम और गैर-मुस्लिम सभी इतिहासकारों ने किया है जिनकी एक झाँकी जयदीपसेन द्वारा लिखित 'भारत में जिहाद' में देखी जा सकती है।
इन अमानुषिक अत्याचारों में मुस्लिम आक्राताओं के साथ अनेक सूफी संत जैसे मुउनुद्दीन (१२३३), शेख फरीदुद्दीन (१२६५), शेख निजामुद्दीन (१३३५) आदि आए। इन्होंने एवं सशस्त्र दोनों प्रकार की जिहाद द्वारा उत्तर प्रदेश, बंगाल दक्षिण भारत एवं कश्मीर में भारी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया (के.एस. लाला, इंडियन मुस्लिम्स हू आर दे, पृ. ५८-७०)
पर प्रश्न उठता है कि इतने पर भी हिन्दू भारत में कैसे बचे रहे? इसका उत्तर प्रसिद्ध सूफी सन्त अमीर खुसरों देता हैः ''अगर हनाफी कानून का भारत में प्रचलन न हुआ होता, जो हिन्दुओं को जजिया कर देने पर जीवन की टूट प्रदान करता है, तो हिन्दू जड़ शाखा सहित पूरी तरह समाप्त हो गए होतो--- 'बधिम्महा गढ़ना बुदि रुखसत-ई शरना मंडी नाम. ई हिन्दु जी स्ल ता फर' (अमीर खुसरो आशिकाह, सं. राशि अहमद अंसारी, अलीगढ़ १९१७ पृ. ४६) हनीफी कानून के अलावा सभी मुस्लिम कानून गैर-मुसलमानों को 'इस्लाम या मौत' में से एक की इजाजत देते हैं। इसके अलावा १५६४ में जजिया हटा लिया गया जिसे औरंगजेब ने १६७९ में दुबारा लगा दिया।
संक्षेप में यह कहना उचित होगा कि इतने अत्याचारों के बाद भी मुसलमान इस अवधि में समस्त भारत पर कभी कब्जा नहीं कर सके क्योंकि एक तरफ साधु सन्तों ने भक्ति आन्दोलन के माध्यम से जन चेतना जगाई तथा विरोध किया और दूसरी तरफ लगभग सभी राजाओं ने अपने अपने क्षेत्र में मुसलमानों से डटकर संघर्ष किया।
प्रारम्भ में असम के राजा ने बखतियार खिलजी को १२०५ में आगे नहीं बढ़ने दिया तो दक्षिण में विजयनगरम् के राजाओं ने १३५०-१५६५ तक यवनों से टक्कर ली। इन्होंने तत्कालीन राजनीति को नियंत्रित किया। (मजूमदार आदि वही, पृ. ३०७) पर सुलतान आदिलशाह के हमले (२३.१.१५६५) में महाराजा रामा राजा के दो मुस्लिम सेनापति जिनके अधीन ७०००० से ८०००० सैनिक थे, आदिलशाह की सेना में मिल गए। अतः विजयनगरम् राज्य समाप्त हो गया (वोस्टोम-दी लीजेसी ऑफ जिहाद, पृ. ६५३)। इसी प्रकार पश्चिमी भारत में राजपूतों-राणा कुम्भा (१४३०-१४६९), राणा सांगा (१५०९-१५२७) और मेवाड़ सूर्य महाराणा प्रताप (१५३०-१५६९) ने मुस्लिम सुलतानों एवं अकबर से टक्कर ली। इसी तरह औरंगजेब के काली में (१६५८-१७०७) दक्षिण में छत्रपति शिवाजी (१६४६-१६००) एवं अन्य मराठों से संघर्ष किया तो उत्तर में सिख गुरुओं ने सशस्त्र विरोध किया। गुरु अर्जुन देव ने जहाँगीर (१६११) के काल में; और बाद में गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब के राज में इस्लाम का विरोध करते हुए अपने तीनों शिष्यों-भाई मतिदास, सतीदास एवं दयालदास सहित १६७५ में अपना बलिदान किया। यहाँ गोकुला जाट (६९६९) और नारनौल के सतनामियों ने सशस्त्र विरोध (१६७२) किया। इसी काल में गुरु गोविन्द सिंह ने धर्म और देश की रक्षार्थ सिखों का सैनिकीकरण किया। उनके चारों बेटे देश के लिए बलिदान हो गए। दो दीवारों में चुने गए और दो शहीद हो गए। १६०८ में एक धर्मान्ध अफगान ने गुरु की हत्या कर दी। इसकी प्रतिक्रिया में बन्दा वैरागी के गुरु के बच्चों के हत्यारे वजीरखां की हत्या कर दी। मगर मुगल सेना ने बन्दा वैरागी के बेटे को उनके ही सामने व स्वंय उनकी हाथी से कुचलवा कर हत्या कर दी गई।
सार की बात यह है कि इन पांच सौ वर्षों में गुरु नानकदेव, समर्थ गुरु रामदास आदि सन्तों और हिन्दू राजाओं ने आततायी मुस्लिमों का डटकर विरोध किया और उन्हें चैन से राज नहीं करने दिया। काश! ये हिन्दू राजा यदि अपना अहम् एवं क्षेत्रीयता की संकुचित भावना को छोड़कर मुस्लिम आक्रान्ताओं को अपने धर्म व देश का सांझा शत्रु मानकर एक जुट होकर संघर्ष करते तो भारत में इस्लाम तभी समाप्त हो गया होता।
४. हिन्दू-मुस्लिम ब्रिटिश संघर्ष काल (१७०७-१८५७)- औरंगजेब के निधन (३ मार्च १७०७) के बाद मुगल साम्राज्य-डकन, बंगाल और अवध में विभाजित हो गया। दिल्ली की सत्ता कमजोर हो गई। (मजूमदार आदि, वही पृ. ५३९)। इधर मराठाओं में पेशवा एक प्रबल शक्ति के रूप में उभरे जिन्होंने अनेक क्षेत्र मुसलमानों से छीनकपर उत्तर भारत तक अपना राज्य स्थापित किया।
पंजाब में सिखों व उत्तर प्रदेश व हरियाणा में सूरजमल जाट (१७५६-१७६३) प्रभावशाली रहे। सिखों ने पहले अफगानिस्तान के सुलतान नादिरशाह (१७३९) और इसके सेनापति एवं बाद में सुलतान अब्दुलशाह अब्दाली के पाँच आक्रमणों (१७४७-१७५९) का विरोध किया। मग रवह (१७६१) में मराठों को पराजित कर १२ दिसम्बर १७६२ के लाहौर वापिस चला गया जिसका सिखों ने पीछ किया तथा १७६७ में वह भारत से पूरी तरह चला गया। १७७३ तक पश्चित में अटक तक सिखों का राज हो गया तथा महाराजा रणजीत सिंह (१७८०-१८३९) ने पंजाब, कश्मीर एवं पेशावर तक अपना एक सुदृढ़ राज्य स्थापित कर लिया। हालांकि मराठों, सिखों व जाटों ने मुसलमानों का डटकर विरोध किया मगर वे एक साथ मिलकर मुस्लिम राज्य समाप्त करने के लिए कोई प्रभावी रणनीति में सफल नहीं हो सके। मराठे शिवाजी के हिन्दू पद्पादशाही स्थापित करने के सपनों को पूरा न कर सके।
इस काल खं डमें १६०८ में भारत में, व्यापार के लिए आए ब्रिटिशों ने धीरे-धीरे एक मजबूत सेना तैयार कर ली और एक-एक कर कोरामंडल (१७४६), फिर मद्रास (१७४८), मैसूर (१७६७, १७७९ एवं १७८९) और पलासी के युद्ध (२३.०६.१७५७) में बंगाल पर कब्जा कर लिया। उत्तर भारत में जाटों एवं सिखों के प्रबल विरोध के बावजूद अंग्रेज साम-दाम, दण्ड-भेद की नीति से १८५७ तक पूरे भारत के शासक हो गए। इस काल खं डमें हिन्दू अपने शत्रुओं-अंग्रेजों और सुलतानों के विरुद्ध सफल न हो सके। परन्तु मुसलमानों ने अपने इस्लामी भारत के सपने नहीं छोड़े।
५. स्वतंत्रता आन्दोलन काल (१८५७-१९४७)- भारत का अंग्रेजों के विरुद्ध पहला स्वतंत्रता संग्राम १८५७ में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन जन मानस का था, किसी तेजस्वी दूरदर्शी नेता के मार्ग दर्शन में योजनाबद्ध नहीं था। अतः कानपुर (बिठूर) के नाना साहेब पेशवा के बाद यह आन्दोलन प्रभावहीन हो गया। मुसलमानों ने खोई सत्ता पाने के अनेक प्रयास किए। मगर अंग्रेजों ने इन सबको कुचल दिया। इस काल में महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द एवं योगीश्री अरविन्द ने राष्ट्र चेतना जागृत की। उधर अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमानों को 'बाँटो और राज करो' की नीति अपनाई तथा मुसलमानों का परोक्ष रूप में समर्थन किया। साथ ही हिन्दुओं का विरोध दबाने के लिए अंग्रेज ह्यूम ने १८८५ में कांग्रेस की स्थापना की जो ३० साल तक अप्रभावी रही। हालांकि बाल गंगाधर तिलक ने इसे आक्रामक बनाने का प्रयास किया।
मुसलमानों ने १९०६ में मुस्लिम लीग की स्थापना की जो अंग्रेजों के संरक्षण के कारण सैदव कांग्रेस पर हावी रही। १९२० के बाद कांग्रेस पर गाँधी-नेहरू का वर्चस्व हो जाने के कारण यह मुस्लिम लीग के कट्टरपन के आगे नतमस्तक हो गई।
कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के मार्च १९४० के द्वि राष्ट्र सिद्धान्त के आधार पर भारत विभाजन तो माना परन्तु डॉ. अम्बेडकर एवं श्यामाप्रसाद मुखर्जी और पाकिस्तानी नेताओं के हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली के तर्कसंगत सिद्धान्त को नहीं माना। इसमें गाँधी-नेहरु कांग्रेस और भारतीय मुसलमानों दोनों के ही अपने-अपने राजनैतिक स्वार्थ थे। नेहरू कांग्रेस मुस्लिम वोटों से लम्बे समय तक राज करना चाहते थे; और मुसलमान यहाँ बसे रहकर तेजी से आबादी बढ़ाकर शेष भारत को भी इस्लामी राज्य बनाना चाहते थे।
वास्तव में अगस्त १९४७ से पहले हिन्दू मुस्लिम जनसंखया की अदला-बदली ने करना भारत विभाजन से भी ज्यादा हानिकारक सिद्ध हुआ है। पाकिस्तान ने तो लाखों हिन्दुओं की हत्या, धर्मान्तरण व निष्कासन करके अपने देश को लगभग हिन्दू विहीन कर लियाख मगर देश द्रोही नेहरू ने भारत को हिन्दू राज्य न बनाकर हिन्दुओं के साथ महान विश्वासघात किया। हिन्दुओं को स्वतंत्रता नहीं मिली बल्कि उनका देश काटकर उन्हें दे दिया जो पिछले १३०० वर्षों से भारत में इस्लामी राज्य स्थापित करने के लिए जिहाद कर रहे थे।
सच्चाई यह है कि अंग्रेजों के विरुद्ध सम्पूर्ण भारत की स्वतंत्रता का आन्दोलन मुखयतया हिन्दुओं ने ही चलाया था। मुसलमानों ने तो पाकिस्तान के लिए आन्दोलन में भाग लिया। अंग्रेजों ने जाने से पहले देश बाँट कर, जहाँ हिन्दुओं को सजा दी वहीं मुसलमानों को पाकिस्तान का पुरस्कार दिया। मगर उन्होंने भी जाने से पहले हिन्दू मुस्लिम आबादी की अदला-बदली न करके हिन्दुओं के साथ दूसरा विश्वासघात किया। मुझे तो इस अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय में अंग्रेजों-मुसलमानों और नेहरू की मिली भगत प्रतीत होती है जो कि सम्भतः पहले से ही तयह हो।
इसके अलावा जब विभाजन का आधार ही द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त था तो सारे मुसलमानों को पाकिस्तान में ही जाकर बसना चाहिए जिनके लिए इतना बड़ा भूभाग दिया गया। उनका भारत में बसे रहना अनैतिक है। मगर यह अनैतिकता जिहाद के उद्देश्य पूर्ति के सामने महत्वहीन है। नेहरू व बहुसंखयक हिन्दू-कांग्रेस ने मुस्लिमों को यहां बसाकर जो घाव हिन्दुओं को दिए हैं वे कभी भरेंगे नहीं। वास्तव में कांग्रेस ने भारत के इस्लामी जिहाद में अंसारो (सहायकों) और मुजाहिदों (योद्धाओं) की भूमिका निभाई थी जिसे वे आज तक भी सच्चाई के साथ निभा रहे हैं और सम्भवतः शेष भारत के इस्लामी राज्य बनने तक निभाते रहेंगे।
६. स्वातंत्र्योत्तर काल (१९४७-२००९) विभाजन के बाद भारत को सेक्यूलर राज्य दर्जा दिया गया। साथ ही भाषायी और धार्मिक अल्पसंखयकों को अनुच्छेद २५- से ३० तक में विशेष अधिकार दिए गए जो कि सेक्यूलरिज्म की अवधारणा के विरुद्ध हैं। मगर विडम्बना यह है कि अल्पसंखयकों-मुसलमानों व ईसाईयों को, जिस सेक्यूलरिज्म के आधार पर विशेष सुविधाऐं दी जा रही हैं, वे सैक्यूलरिज्म में विश्वास हीं नहीं करते हैं। वे चाहते हैं कि राज्य तो सेक्यूलर रहे ताकि वे सभी धार्मिक व राजनैतिक अधिकारों का लाभ उठाते रहें, परन्तु उन्हें सैक्यूलरिज्म से मुक्त रखा जाए।
हमारे उपरोक्त कथन की पुष्टि इस्लामी साहित्य के विद्वान प्रो. मुशीरूल हक अपनी पुस्तक 'इस्लाम इन सेक्यूलर इंडिया' में लिखते हैं-
(i) ''भारतीय मुसलमानों में, एक छोटे से वर्ग को छोड़कर, बहुसंखयक समाज किसी भी प्रकार से सैक्यूलर नहीं हैं।'' (पृ. १)
(ii) उनमें से अधिकांशों (उलेमाओं) का विश्वास है कि राज्य तो सैक्यूलर रहे, मगर मुसलमानों को सैक्यूलरिज्म से बचाया जाए।'' (पृ. १२)
(iii)''मुसलमानों को सेक्यूलरिज्म और सेक्यूलर राज्य की अवधारणाओं को शरियत के आधार पर स्वीकृत या अस्वीकृत करना होगा। सेक्यूलर राज्य जैसा हम देख चुके हैं, इस्लाम के इतिहास में भी है। अतः स्वीकार्य है। लेकिन सेक्यूलरिज्म का सिद्धान्त इस्लाम की मान्यताओं के अनुकूल नही हैं। (पृ. १५)
इसी भावना से प्रेरित हो, जमाते इस्लामी नेता सैयद अहमद हुसैन ने ७ फरवरी १९६१ को औरंगाबाद में कहा- ''क्या मुसलमान अपने तमाम इस्लामी सिद्धान्तों को छोड़कर सेक्यूलरिज्म की बढ़ती हुई धारा में बह जाएँगे? धारा के प्रवाह को ही बदल देंगे और यहाँ इस्लामी राज्य स्थापित करेंगे? यह एक गम्भीर चुनौती है जो हर मुसलमान के दिल हौर दिमाग को झकझोर रही है। इस्लाम के अनुयायियों का दावा है कि इस्लाम की उत्पत्ति ही विश्व में इस्लाम की स्थापना के लिए हुई है। हमें तो भारत में सेक्यूलर राज्य को बदलना है और उकी जगह इस्लामी राज्य बनाना है।'' (बी.डी. भारती, दी हिन्दू पृ. १८)
इसी प्रकार मलेशिया के विद्वान लेखक सैयद मुहम्मद नकीब अल अतरस, अपनी पुस्तक ''इस्लाम, सेक्यूलरिज्म ऑफ दी फ्यूचर'' में लिखते हैं-
(i) ''इस्लाम स्वयं सेक्यूलर या सेक्यूलरीकरण और सेक्यूलरवाद की अवधारणाओं और उनके प्रयोगों को पूरी तरह से नकारता है; क्योंकि वे उसके अंग नहीं हैं और वे इस्लाम से सभी बातों में विभिन्न हैं; और वे पश्चिमी ईसाई धर्म के अनुभवों के बौद्धिक इतिहास के अंग और उसके स्वभावतः अनुरूप हैं।'' (पृ. २३)
(ii) ''सेक्यूलरिज्म केवल गैर-इस्लामी विचारधारा (दर्शन) ही नहीं, बल्कि सरासर इस्लाम विरोधी है और मुसलमानों को चाहिए कि जहाँ भी इसे पाएँ-अपनों के बीच अथवा अपने मन में, इसका तीव्र विरोध करें और कुचल दें क्योंकि यह सच्चे धर्म के लिए घातक विष है।'' (पृ. ३८)
(iii) ''सेक्यूलरीकरण इस्लामी जगत की न केवल पूर्णतया एक गैर-इस्लामी अभिव्यक्ति है, बल्कि यह पूर्णतया इस्लाम विरोधी भी है।
अन्त में, सबसे आपत्तिजनक और आश्चर्यजनक तो यह है कि जब मुसलमान स्वयं सेक्यूलरिज्म का दृढ़ता से विरोध करते हैं तो ऐसे सेक्यूलरिज्म विरोधयों को, सेक्यूलरिज्म के नाम पर सरकार एवं सभी राजनैतिक पार्टियाँ क्यों समर्थन करती हैं।
भारत का इस्लामीकरण क्यों?
पाकिस्तान मिलने के बाद मुसलमानों ने नारा दिया : ''हँस के लिया है पाकिस्तान, लड़ लेंगे हिन्दुस्तान''। इसीलिए १९४७ से ही भारत में इस्लामी जिहाद जारी है जिसमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तानी एवं भारतीय मुसलमान सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। देखिए कुछ प्रमाण-
(i) हकीम अजमल खां ने कहा- ''एक और भारत और दूसरी ओर एशिया माइनर भावी इस्लामी संघ रूपी जंजीर की दो छोर की कड़िया हैं जो धीर-धीरे, किन्तु निश्चय ही बीच के सभी देशों को एक विशाल संघ में जोड़ने जा रही हैं'' (भाषण का अंश खिलाफत कान्फ्रेस अहमदाबाद १९२१, आई.ए.आर. १९९२, पृ. ४४७)
(ii) कांग्रेस नेता एवं भूतपूर्व शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद ने पूरे भारत के इस्लामीकरण की वकालत करते हुए कहा- ''भारत जैसे देश को जो एक बार मुसलमानों के शासन में रह चुका है, कभी भी त्यागा नहीं जा सकता और प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है कि उस खोई हुई मुस्लिम सत्ता को फिर प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें'' बी.आर. नन्दा, गाँधी पेन इस्लामिज्म, इम्पीरियलज्म एण्ड नेशनलिज्म पृ. ११७)
(iii) एफ. ए. दुर्रानी ने कहा- ''भारत-सम्पूर्ण भारत हमारी पैतृक सम्पत्ति है उसका फिर से इस्लाम के लिए विजय करना नितांत आवश्यक है तथा पाकिस्तान का निर्माण इसलिए महत्वपूर्ण था कि उसका शिविर यानी पड़ाव बनाकर शेष भारत का इस्लामीकरण किया जा सके।'' (पुरुषोत्तम, मुस्लिम राजनीतिक चिन्तन और आकांक्षाएँ, पृ. ५१,५३)
(iv) मौलाना मौदूदी का कथन है कि ''मुस्लिम भी भारत की स्वतंत्रता के उतने ही इच्छुक थे जितने कि दूसरे लोग। किन्तु वह इसकी एक साधन, एक पड़ाव मानते थे, ध्येय (मंजिल) नहीं। उनका ध्येय एक ऐसे राज्य की स्थापना का था जिसमें मुसलमानों को विदेशी अथवा अपने ही देश के गैर-मुस्लिमों की प्रजा बनकर रहना न पड़े। शासन दारूल-इस्लाम (शरीयः शासन) की कल्पना के, जितना सम्भव हो, निकट हो। मुस्लिम, भारत सरकार में, भारतीय होने के नाते नहीं, मुस्लिम हैसियत से भागीदार हों।'' (डॉ. ताराचन्द्र, हिस्ट्री ऑफ दी फ्रीडम मूवमेंट, खंड ३, पृ. २८७)
(v) हामिद दलवई का मत है कि ''आज भी भारत के मुसलमानों और पाकिस्तान में भी प्रभावशाली गुट हैं, जिनकी अन्तिम मांग पूरे भारत का इस्लाम में धर्मान्तरण है''। (मुस्लिम डिलेमा इन इंडिया, पृ. ३५)
(vi) बंगालदेश के जहांगीर खां ने ''बंगला देश, पाकिस्तान, कश्मीर तथा पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब व हरियाणा के मुस्लिम-बहुल कुछ भागों को मिलाकर मुगलियास्थान नामक इस्लामी राष्ट्र बनने का सपना संजोया है।'' (मुसलमान रिसर्च इंस्टीट्यूट, जहांगीर नगर, बंगलादेश, २०००)
(vii) सउदी अरेबिया के प्रोफेसर नासिर बिन सुलेमान उल उमर का कथन है कि ''भारत स्वयं टूट रहा है। यहाँ इस्लाम तेज गति से बढ़ रहा है और हजारो मुसलमान, पुलिस, सेना और राज्य शासन व्यवस्था में घुस चुके हैं और भारत में इस्लाम सबसे बड़ा दूसरा धर्म है। आज भारत भी विध्वंस के कगार पर है। जिस प्रकार किसी राष्ट्र को उठने में दसियों वर्ष लगते हैं उसी प्रकार उसके ध्वंस होने में भी लगते हैं। भारत एकदम रातों-रात समाप्त नहीं होगा। इसे धीरे-धीरे समाप्त किया जाएगा। निश्चय ही भारत नष्ट कर दिया जाएगा।'' (आर्गे; १८.७.०४)। इसीलिए मुस्लिम धार्मिक नेता मौलाना वहीदुद्दीन ने सुझाव दिया कि ''मुसलमानों को कांग्रेस में शामिल हो जाना चाहिए और आगे चलकर उनमें से एक निश्चय ही भारत का प्रधान मंत्री हो जाएगा।'' (हिन्दु. टा. २५.१.९६) (हिन्दु. टा. २५.१.९६)
पाकिस्तानी जिहादियों का उद्देश्य भी अगस्त १९४७ का अधूरा कार्यक्रम पूरा करना है यानी पहले कश्मीर और फिर शेष भारत को इस्लामी राज्य बनाना। इसके लिए न केवल जिहादी संगठनों बल्कि आई.एस.आई. और तालिबान व पाकिस्तानी सेना का भी समर्थन है क्योंकि भूतपूर्व राष्ट्रपति जिया उल हक ने ''पाकिस्तानी सेना को 'अल्लाह के लिए जिहाद' (जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह) का 'मोटो' या 'आदर्श वाक्य' दिया था। (एस. सरीन, दी जिहाद फैक्ट्री पृ. ३२१)
जिहादियों के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए मरकज दवाल वल इरशाद के अमीर हाफिज़ मुहम्मद सईद ने कहाः ''कश्मीर को भारत से मुक्त कराने के बाद लश्करे तायबा वहीं नहीं रुकेगा बल्कि भारतीय मुसलमानों, जिन पर हिन्दुओं द्वारा अत्याचार हो रहे हैं, के सहयोग से आगे जाएगा और उन्हें बचाएगा। कश्मीर तो, असली लक्ष्य भारत तक पहुँचने का दरवाजा है।'' (नेशन, ४.११.१९९८)। उन्होंने ७.११.१९९८ को 'पाकिस्तान टाइम्स' में लिखाः ''आखिर में लश्करे टाइबा दिल्ली, तेल अवीब (इज्राइल) और वाशिंगटन के ऊपर झंडा फहराएगा।'' उन्होंने २७ नवम्बर १९९८ को फिर 'फ्राइडे टाइम्स' में लिखाः ''मुस्लिम समाज की सभी समस्याओं का हल जिहाद है क्योंकि सभी इस्लाम विरोधी ताकतें मुसलमानों के विरुद्ध जुट गई हैं। मुजाहिद््दीन भारतीय क्रूरताओं, जो कि निरपराधी कश्मीरियों को भयभीत कर रहे हैं; के विरुद्ध जिहाद कर रहे हैं। लश्कर के मुजाहिद्दीन, विश्व भर में आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।'' इसी लहजे में उन्होंने १८.०८.२००४ को 'निदा ए मिललक्त' में लिखा ''वास्तव में पाकिस्तान तो इस महाद्वीप के मुसलमानों के लिए एक देश है। इसीलिए यह कश्मीर बिना अधूरा है। पाकिस्तान भी हैदराबाद, जूनागढ़ और मुम्बई (महाराष्ट्र) के बिना अधूरा है क्योंकि इन राज्यों ने (१९४७ में) पाकिस्तान में विलय की घोषणा की थी। लेकिन हिन्दुओं के कब्जे से मुक्त कराऐं, और उनकी मुस्लिम आबादी को यह आश्वासन दिया जाएगा कि वे पाकिस्तान के पूर्ण होने के लिए हमारा यह लक्ष्य है। हम भारत में वाणी और कलम से यह उद्देश्य प्रचारित करते रहेंगे और जिहाद द्वारा उन राज्यों को वापिस लेंगे।'' (सरीन, वही. पृ. ३१२) शायद इसीलिए पाकिस्तानी जिहादियों ने २६.११.२००८ को बम्बई पर हमला किया था। साथ ही यह ऐतिहासिक सत्य है कि १९४७ में सभी राज्यों ने स्वेच्छा से भारत में विलय किया था।
जैसे मुहम्मद के अध्यक्ष मौलाना मसूद अजहर, जिन्हें २००० में कंधार में हवाई जहाज में बन्धक बनाए १६० यात्रियों के बदले छोड़ा गया था, ने हाजरों लोगों की उपस्थिति में कहाः ''भारतीयों और उनको बतलाओ, जिन्होंने मुसलमानों को सताया हुआ है, कि मुजाहिद्दीन अल्लाह की सेना है और वे जल्दी ही इस दुनिया पर इस्लाम का झंडा महराएंगे। मैं यहाँ केवल इसलिए आया हूँ कि मुझे और साथी चाहिए। मुझे मुजाहिद्दीनों की जरूरत है जो कि कश्मीर की मुक्ति के लिए लड़ सकें। मैं तब तक शान्ति से नहीं बैठूंगा जब तक कि मुसलमान मुक्त नहीं हो जाते। इसलिए (ओ युवकों) जिहाद के लिए शादी करो, जिहाद के लिए बच्चे पैदा करो और केवल जिहाद के लिए धन कमाओ जब तक कि अमरीका और भारत की क्रूरता समाप्त नहीं हो जाती। लेकिन पहले भारत।'' (न्यूज ८.१.२०००)
तहरीका-ए-तालिबान के सदर हकीमुल्लाह ने कहाः ''हम इस्लामी मुल्क चाहते हैं। ऐसा होते ही हम मुल्की सीमाओं पर जाकर भारतीयों के खिलाफ जंग में मदद करेंगे।' (दै. जागरण, १६.१०.२००९)
भारतीय व पाकिस्तानी मुसलमान पिछले ६२ वर्षों से एक तरफ कश्मीर में हिंसा पूर्ण जिहाद कर रहे हैं जिसके कारण पांच लाख हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी हो गए तथा हजारों सैनिक व निरपराध नागरिक मारे जा चुके हैं; तथा दूसरी तरफ वे शान्तिपूर्ण जिहाद द्वारा भारत सरकार के सामने नित नई आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक मांगे रख रहे हैं। इनके कुछ नमूने देखिए-
1- राजनैतिक मांगे- (१) मुस्लिम व्यक्तिगत कानून का अधिकाधिक प्रयोग एवं सरकारी हस्तक्षेप का विरोध करना, (२) समान आचार संहिता का विरोध करना, (३) गैर-कानूनी ढंग से आए बंगला देशी मुस्लिमों की वापिसी का विरोध करना, (४) बंगलादेशी व पाकिस्तानी नागरिकों को वीसा अवधि समाप्त होने पर भी रुके रहने में सहयोग देना, (५) पुलिस, सेना व अर्धसैनिक बलों व संवेदनशील विभागों में मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग करना, (६) पाकिस्तान के लिए सेना सम्बन्धी गुप्तचरी करने एवं उसमें सहयोग देना, (७) पाकिस्तानी आई.एस.आई. की कार्य योजनाओं में सहयोग देना, (८) जिहादी कार्यों के लिए नशीले पदार्थों की तस्करी करना, (९) नकली नोटों का प्रसार करना या दूसरों से करवाना, (१०) भारत में राजनैतिक अस्थिरता एवं अलगाववाद पैदा करने के लिए आन्दोलनों में सहयोग देना, (११) म्युनिस्पिल, राज्य एवं संसद के चुनावों में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के सहयोग से मुस्लिम या मुस्लिम हितकारी नेताओं को कूटनीति से वोट डालकर चुनाव में जिताना, और अधिकाधिक राजनैतिक सत्ता एवं आर्थिक लाभ प्राप्त करना, (१२) मुस्लिम वोट बैंक के बदले अधिकाधिक राजनैतिक, धार्मिक व आर्थिक सुविधाओं की मांग आदि आदि।
2- मुसलमानों के लिए सरकारी आर्थिक सहायकता व नौकरियों में आरक्षण- (१) मुसलमान युवकों को रोजगार-परक शिक्षा के लिए मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सरकारी स्कूल खुलवाना, (२) उर्दू के विकास के लिए संघर्ष करना, (३) सामान्य व प्रोफेशनल कॉलेजों में दाखिले के लिए आरक्षण मांगना, (४) स्पर्धा वाली सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए विशेष वजीफा व सुविधा आदि मांगना, (५) सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं में नौकरियों में आरक्षण मांगना, (६) निजी व्यवसाय खोलने के लिए कम ब्याज दर पर पर्याप्त ऋण पाने की मांग करना आदि।
3- धार्मिक कार्यों के लिए आर्थिक सहायता- (१) बढ़ती मुस्लिम जनसंखया के लिए अधिकाधिक हज्ज के लिए सब्सिडी की मांग करना, (२) मुस्लिम बहुल राज्यों में हज्ज, हाउसों की स्थापना की मांग करना, (३) मस्जिद, मदरसा, व धार्मिक साहित्य के लिए प्राप्त विदेशी सहायता पर सरकारी हस्तक्षेप का विरोध करना, (४) उर्दू के अखबारों के लिए सरकारी विज्ञापन एवं धार्मिक साहित्य छापने के लिए सस्ते दामों पर कागज का कोटा माँगना, (५) मस्जिदों के इमामों के लिए वेतन माँगना, (६) वक्फ बोर्ड के नाम पर राष्ट्रीय सम्पत्ति पर कब्जा करना एवं सरकारी सहायता मांगना आदि।
4- कट्टरपंथी इस्लामी शिक्षा का प्रसार- (१) इसके लिए सरकारी सहायता की मांग करना तथा कम्प्यूटर के प्रशिक्षण के बाद इन्टरनेट, ई-मेल आदि से इस्लाम का प्रचार करना; (२) मदरसों द्वारा धार्मिक कट्टरता पैदा करना (३) अनाधिकृत मदरसों और मस्जिदों में गुपचुप आतंकवाद का प्रशिक्षण देना, (४) अरबी संस्कृति को अपनाने पर बल देना, (५) मदरसों में आधुनिक विषयों की शिक्षा को बढ़ावा देने व पाठ्यक्रम में सुधार में सरकार के प्रयास पर आपत्ति करना, (६) मदरसों के प्रबन्धन में किसी भी प्रकार के सरकारी हस्तक्षेप का विरोध करना आदि।
5- मुस्लिम जनसंखया- मुस्लिम जनसंखया वृद्धि दर को बढ़ाना ताकि अगले १५-२० वर्षों में वे बहुमत में आकर भारत की सत्ता के स्वतः वैधानिक अधिकारी हो जावें। इसके लिए (१) बहु-विवाह करना, (२) परिवार नियोजन न अपनाना, (३) हिन्दू लड़कियों का अपहरण करना, (४) धनी, व शिक्षित हिन्दू लड़कियों को स्कूल व कॉलेजों में तथा कार्यालयों में प्रेमजाल में फंसाकर एवं धर्मांतरण कर विवाह करना, (५) बंगला देश के मुसलमान युवकों को योजनापूर्ण ढंग से भारत में बसाना, उनकी यहाँ की लड़कियों से शादी कराना व बेरोजगार दिलाना, (६) हिन्दुओं का धर्मान्तरण करना आदि।
6- प्रचार माध्यमों पर कब्जा करना- (१) गैर-मुस्लिम लेखकों को आर्थिक व अन्य प्रकार के प्रलोभन देकर इस्लाम हितकारी दृष्टिकोण को पत्र-पत्रिकाओं, प्रचार माध्यमों, रेडियो, टी.वी. आदि में सामग्री प्रस्तुत करना, (२) फिल्मों में इस्लाम के उदार व मानवीय स्वरूप को प्रस्तुत करना, (३) उच्च पदों पर मुस्लिम एवं मुस्लिम हितमारी व्यक्तियों को बिठाना, (४) शोध के नाम पर गैर-मुस्लिमों के प्राचीन इतिहास को विकृत करना, (५) रक्त रंजित भारतीय मुस्लिम इतिहास को उदार प्रस्तुत करना, (६) हिन्दुओं की धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं की खुले आम निंदा करना, (७) इसके विपरीत इस्लाम पर खुली बहस की जगह 'जिहाद बिल सैफ' द्वारा इस्लाम के आलोचकों को प्रताड़ित एवं हत्या करना, (८) हिन्दुओं का खुले आम धर्मान्तरण करने को तो उचित ठहराना परन्तु यदि कोई मुस्लिम लड़का या लड़की स्वतः हिन्दू बन जाए तो उससे संबंधित हिन्दू पारिवारीजनों की हत्या करना आदि।
आश्चर्य तो यह है कि एक तरफ सरकार भारत को सेक्यूलर राज्य कहती है और दूसरी तरफ धर्म के आधार पर मुसलमानों व ईसाइ्रयों को विशेष सुविधाएँ देती है जो पूर्णतया असंवैधिातिक है। इसके अलावा १५ प्रतिशत भारतीय मुसलमान किसी भी मापदण्ड में अल्पसंखयक नहीं हैं। फिर भी कांग्रेस व अन्य सेक्यूलर राजनैतिक दल राज्यों एवं केन्द्र सरकार में ........ को स्वीकार कर रही है। देखिए कुछ प्रमाण-
1- धार्मिक सुविधाऐं- विश्व के ५७ इस्लामी देशों में से कही भी मुसलमानों को हज्ज यात्रा के लिए आर्थिक सहायता नहीं दी जाती है क्योंकि हज्ज के लिए आर्थिक सहायकता लेना गैर-इस्लामी है। परन्तु भारत सरकार प्रत्येक हज्ज यात्री को हवाई यात्रा के लिए २८००० म्पये की आर्थिक सहायता देती है। हजियों के लिए राज्यों में हज हाउस बनाए गये हैं। इतना ही नहीं जिद्दा में हाजियों की सुविधाएँ देखने के लिए एक विशेष दल जाता है, मानो वहाँ की एम्बेसी काफी नहीं है।
2- वक्फ बोर्ड- मुस्लिमों वक्फ बोर्डों के पास बारह लाख करोड़ी की सम्पत्ति है जिसकी वार्षिक आय १२००० करोड़ है। फिर भी सरकार वक्फ बोर्डों को आर्थिक सहायता देती है।
3- मदरसा- सरकार ने धार्मिक कट्टरवाद एवं अलगावदवाद को बढावा देने वाली मदरसा शिक्षा को न केवल दोष मुक्त बताया बल्कि उसके आधुनिकीकरण के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए आर्थिक सहायता देती है। फिर भी मुसलमान इन मदरसों को केन्द्रीय मदरसा बोर्ड से जु ड़ने देना नहीं चाहते। यहाँ तक कि पाठ्यक्रम में सुझाव व अन्य किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं मानते। (१) पश्चिमी बंगाल सरकार ने २०१० तक ३०० अंग्रेजी माध्यम के मदरसा स्थापित करने का निर्णय लिया है। (पायो. २३.१२.२००९), (२) सरकार ने अल्पसंखयकों के संस्थानों को उच्च शिक्षा में ओबीसी विद्यार्थियों के लिए आरक्षण से मुक्त रखा। (३) इलाहाबाद हाई कोर्ट के विरोध के बावजूद अलीगढ़ विश्व विद्यलाय को अल्पसंखयक स्वरूप बनाए रखने पर बल दिया। (४) अल्पसंखयकों के कक्षा एक से १२वीं तक के विद्यार्थियों के लिए पच्चीस लाख बजीफे दिए जबकि सवर्णों को नहीं हैं। (५) केरल सरकार ने मदरसों के मौलवियों के लिए पेंशन देने का निर्णय किया है। (६) बिहार में १०वीं की परीक्षा पास करने वाले मुस्लिम छात्र को १००००/- रुपये पुरस्कार मिलेगा। (७) राजस्थान में मुस्लिम विद्यार्थी निजी विद्यालयों में पढ़ते समय भी छात्रवृत्ति ले सकते हैं। (शिक्षा बचाओं आन्दोलन, बुले. ४८ पृ. ३२) (८) ....समिति की सिफारिशें के अनुरुप १ से १२ कक्षा तक की पुस्तकें ..... में तैयार होंगी। अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी उर्दू में संचालित करने की योजना है' (राजस्थान पत्रिका ९.९.२००७) (९) पाठ्य-पुस्तकों में पिछली (१९९८-२००३) सरकार द्वारा निकाले गए हिन्दू विरोधी और मुस्लिम-उन्मुख अंशों को दुबारा पुस्तकों में डाल दिया गया। (१०) सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केन्द्र भोपाल, पुरी, किशनगंज (बिहार) मुर्शिदाबाद (पं. बगांल) व मुल्लूपुरम (केरल) में खोलने के लिए दो हजार करोड़ का अनुदान दिया। (वही. बुल. ४८, पृ. ३१) (११) अल्पसंखयकों के एम फिल ओर पी.एच.डी. करने ाले ७५६ विद्यार्थियों को राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा या राज्य स्तरीय पात्रता परीक्षा के बिना बारह से चौदह हजार रुपये महीना रिसर्च फैलोशिप मिलेगी। (दैनिक जाग. २३.१२.२००९) जबकि अन्यों को सरकारी रिसर्च फैलोशिप पाने के लिए ये परीक्षाएँ पास करना अनिवार्य है। (१२) उच्च प्रोफेशनल कोर्सों में पढ़ने वाले अल्ससंखयक विद्यार्थियों की फीस सरकार देगी। (१३) स्पर्धा वाली सरकारी परीक्षाओं के कोचिंग के लिए फीस भी सरकार देगी। ये सुविधाएँ सामान्य नागरिकों को नहीं है।
4- राजनैतिक- (१) अल्पसंखयकों के नाम पर, विशेषकर मुसलमानों के लिए अलग मंत्रालय बनाया गया और उनके लिए ११वीं पंचवर्षीया योजना में १५ प्रतिशत बजट रखा गया। (२) २००४ में सत्ता में आते ही कांग्रेस ने आतंकवाद में फंसे मुसलमानों को बचाने के लिए पोटा कानून निरस्त कर दिया जिसके फलस्वरूप देश में आतंकवाद बढ़ रहा है। (३) मुस्लिम पर्सनल कानूनों और शरियत कोर्टों का समर्थन किया; (४) १३ दिसम्बर २००१ में संसद पर हमले के दोषी अफजलखां को फांसी की सजा आज तक लटकी हुई है। (५) १७ दिसम्बर २००६ को नेशनल डवलपमेंट काउंसिल की मीटिंग में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यहाँ तक कह दिया कि ''भारतीय संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।'' शायद इसीलिए उन्हें रोजगार, ऋण, शिक्षा आदि में विशेष सुविधाऐं दी जा रही हैं। (६) सरकार बंगला देशी मुस्लिमों घुसपैठियों को निकालने में उत्साहहीन है जबकि वे भारत के इस्लामीकरण के लिए यहाँ बस रहे हैं
5- आर्थिक- (१) सच्चर कमेटी द्वारा मुस्लिमों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए ५४६० करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया; (२) उनके लिए सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने के लिए एक कारपोरेशन बनाया गया, (३) सार्वजनिक क्षेत्र में उदारता बरतें। इस अभियान की निगरानी के लिए एक मोनीटरिंग कमेटी' काम करेगी।'' (दैनिक नव ज्योति, ०४.०१.२००६)। (४) अल्पसंखयक विद्यार्थियों को माइनोरिटी डवलपमेंट एण्ड फाइनेंस कारपो. से ३ प्रतिशत पर ऋण दिया जाता है। (५) पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रत्येक विभाग के बजट में से ३० प्रतिशत आवंटन मुसलमानों के लिए किया गया। (वही. बृ. पृ. ३२) (६) १३ अगस्त २००६ को सरकार ने लोक सभा में बतलाया कि मुस्लिम प्रभाव वाले ९० जिलों और ३३८ शहरों में मुसलमानों के लिए विशेष विकास फण्ड का प्रावधान किया गया है। (वही, बृ. ४८, पृ. ३३)।
अतः धर्म निरपेक्ष देश की सरकार धर्म के आधार पर एक वर्ग विशेष के वोट पाने के लिए सभी उचित व अनुचित तरीके अपना रही हैं। इसीलिए उच्चतम न्यायालय ने सावधान करते हुए १८ अगस्त २००५ को कहा- ''राजनैतिक या सामाजिक अधिकारों में कमी को आधार बनाकर भारतीय समाज में अल्पसंखयक समूहों को निर्धारित करने और उसे मानने की प्रवृत्ति पांथिक हुई तो भारत जैसे बहुभाषी, बहुपांथिक देश में इसका कोई अन्त होने वालो नहीं। एक समुदाय द्वारा विशेषाधिकारों की मांग दूसरे समुदाय को ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करेगी जिससे परस्पर संघर्ष और झगड़े बढ़ेगें।'' परन्तु वोटों की लालची और सत्ता की प्यासी सेक्यूलर सरकारें इन चेतावनियों की परवाह नहीं करती हैं।
सबसे अधिक पीड़ा की बात तो यह है कि जिस भारत की स्वाधीनता व अखंडता के लिए हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों वर्षों तक संघर्ष किया, लाखों योद्धाओं ने अपने प्राण न्यौछावर किए और देश को इस्लामीकरण से बचाया आज जिन नेताओं को देश की रक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा गया है वे ही स्वार्थवश कुछ दिन राज करने के लिए भारत के इस्लामीकरण में निर्लज्जता के साथ सहयोग दे रहे हैं। वे उन करोड़ों देशभक्तों के साथ विश्वासघात कर हरे हैं जिन्होंने देश के लिए बलिदान किए। कांग्रेस एवं अन्य सेक्यूलर पार्टियों का मुस्लिमों के सामने आत्म समर्पण एवं वोट बैंक की राजनीति करना देश की भावी स्वाधीनता के लिए चिन्ता का विषय है। सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण सारा देश इस्लामी जिहाद और आतंकवाद से पीड़ित है। क्या देश की सेक्यूलर पार्टियों को दिखाई नहीं देता कि पाकिस्तान एवं भारत के मुसलमान शेष भारत में इस्लामी राज्य स्थापित करना चाहते हैं? इनका मुस्लिम तुष्टीकरण करना उन लाखों करोड़ों देशभक्तों की शहादत का अपमान है जिन्होंने भारत को इस्लामी राज्य बनने से बचाया।
स्वामी लक्ष्मिशंकाराचार्य जी की पुस्तक ''इस्लाम आतंक ? या आदर्श'' से भी गलतफहमी दूर की जासकती है
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विद्वानों ने मुझसे कहा -" आपने क़ुरआन माजिद की जिन आयतों का हिंदी अनुवाद अपनी किताब में लिया है, वे आयतें अत्याचारी काफ़िर मुशरिक लोगों के लिए उतारी गयीं जो अल्लाह के रसूल ( सल्ल०) से लड़ाई करते और मुल्क में फ़साद करने के लिए दौड़े फिरते थे। सत्य धर्म की रह में रोड़ा डालने वाले ऐसे लोगों के विरुद्ध ही क़ुरआन में जिहाद का फ़रमान है।
उन्होंने मुझसे कहा कि इस्लाम कि सही जानकारी न होने के कारण लोग क़ुरआन मजीद कि पवित्र आयतों का मतलब समझ नहीं पाते। यदि आपने पूरी क़ुरआन मजीद के साथ हज़रात मुहम्मद ( सल्लालाहु अलैहि व सल्लम ) कि जीवनी पढ़ी होती, तो आप भ्रमित न होते ।"
मुस्लिम विद्वानों के सुझाव के अनुसार मैंने सब से पहले पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद कि जीवनी पढ़ी। जीवनी पढ़ने के बाद इसी नज़रिए से जब मन की शुद्धता के साथक़ुरआन मजीद शुरू से अंत तक पढ़ी, तो मुझे क़ुरआन मजीद कि आयतों का सही मतलब और मक़सद समझ आने लगा ।
सत्य सामने आने के बाद मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इसी कारण ही मैंने अपनी किताब ' इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास ' में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा है जिसका मुझे हार्दिक खेद है ।
मैं अल्लाह से, पैग़म्बर मुहम्मद ( सल्ल०) से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजानिक रूप से माफ़ी मांगता हूँ तथा अज्ञानता में लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूं। सभी जनता से मेरी अपील है कि ' इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास ' पुस्तक में जो लिखा है उसे शुन्य समझें ।