Tuesday, February 1, 2011

कुरान में जिहाद

कुरान में जिहाद

जिहाद शब्द की उत्पत्ति-'

जिहाद' शब्द अरबी भाषा के 'जुहद' शब्द से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'कोशिश करना'। मगर इस्लाम के धार्मिक अर्थों में जो शब्द प्रयोग होता है वह है-'जिहाद फीसबी लिल्लाह' यानी 'अल्लाह के लिए' या 'अल्लाह के मार्ग में जिहाद करना'। (जिहाद फिक्जेशन, पृ. ११)। जिहाद का कोई पर्यायवाची या समानार्थक शब्द नहीं है। इसलिए इसका शाब्दिक अर्थ नहीं किया जा सकता है बल्कि इसकी व्याखया ही की जा सकती है।

जिहाद का महत्व-

इस्लाम के सभी विद्वान मानते हैं कि इस्लाम के धर्मग्रन्थों यानी कुरान और हदीसों में जिहाद का जितना विस्तृत वर्णन किया गया है, उतना अन्य किसी विषय का नहीं है। कुरान में 'जिहाद की सबी लिल्लाह' शब्द पैंतीस और 'कत्ल' उनहत्तर बार आया है' (जिहाद फिक्जे़शन, पृ. ४०)। हालांकि तीन चौथाई कुरान पैगम्बर मुहम्मद पर मक्का में अवतरित हुआ था, मगर यहाँ जिहाद सम्बन्धी पाँच आयतें ही हैं, अधिकांश आयतें मदीना में अवतरित हुईं। मोरे के अनुसार मदीना में अवतरित २४ में से, १९ सूराओं (संखया २, ३, ४, ५, ८, ९, २२, २४, ३३, ४७, ४८, ४९, ५७-६१, ६३ और ६६) में जिहाद का व्यापक र्वान है (इस्लाम दी मेकर ऑफ मेन, पृत्र ३३६)। इसी प्रकार ब्रिगेडियर एस. के. मलिक ने जिहाद की दृष्टि से मदीनाई आयतों को महत्वपूर्ण मानते हुए इनमें से १७ सूराओं की लगभग २५० आयतों का 'कुरानिक कन्सेप्ट ऑफ वार' में प्रयोग किया है तथा गैर-मुसलमानों से जिहाद या युद्ध करने सम्बन्धी अनेक नियमों, उपायों एवं तरीकों को बड़ी प्रामाणिकता के साथ बतलाया है जो कि जिहादियों को भड़काने के लिए अक्सर प्रयोग की जाती हैं। डॉ. के. एस. लाल के अनुसार कुरान की कुल ६३२६ आयतों में से लगभग उनतालीस सौा (३९००) आयतें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से अल्लाह और उसके रसूल (मुहम्मद) में 'ईमान' न रखने वाले 'काफिरों', 'मुश्रिकों और मुनाफ़िकों' से सम्बन्धित हैं।

(थ्योरी एण्ड प्रेक्टिस ऑफ मुस्लिम स्टेट इन इंडिया, पृ. ५)



जिहाद का अर्थ-

इस्लाम के समर्थक बार-बार यही तर्क देते हैं कि जिहाद का अर्थ तो 'कोशिश' या 'प्रयास करना' है। जबकि साउदी अरेबिया की हज्ज मिनिस्ट्री से हिजरी १४१३ में प्रमाणित कुरान के अंग्रेजी भाष्य में 'अल्लाह के मार्ग में जिहाद' की ८३ आयतों में 'स्ट्राइब' का शाब्दिक अर्थ 'युद्ध करना' या 'कत्ल करना' किया गया है। पांच आयतों (२ः१९१;३ः१५६;३ः१५७; ३ः१९५) और १९ः५ क्रमशः पृष्ठ संखया ८०, १८८, १८९, २०२ और ४९५-४९७) में तो स्ट्राइव शब्द का अर्थ फाइट (युद्ध करना) और स्ले (कत्ल करना) दोनों अर्थ एक ही आयत में साथ-साथ किए गए हैं। इतना ही नहीं, कुरान में मुसलमानों को गैर-मुसलमानों से अल्लाह के मार्ग में युद्ध करने के लिए अनेकों आदेश दिए गए हैं-(सभी आयतों का प्रमाणिक हिन्दी अनुवाद 'कुरान मजीद' से लिया गया है जिसमें अरबी कुरान के साथ मारमाड्‌यूक पिक्थल का अंग्रेजी और मुहम्मद फ़ारुख खाँ का हिन्दी अनुवाद साथ-साथ दिया गया है।

जिहाद का अर्थ नीचे लिखी आयतों में सुस्पष्ट है :

(i) सबसे पहले अल्लाह ने मानव समाज को दो गुओं में बांटा (कुरान, ५८ः१९-२२)। जो अल्लाह और मुहम्मद पर ईमान लाते हैं वे अल्लाह की पार्टी वाले (मोमिन) हैं और जो ऐसा नहीं करते, वे शैतान की पार्टी वाले काफ़िर हैं, और मोमिनों का कर्त्तव्य है कि वे कफ़िरों के देश (दारूल हरब) को जिहाद द्वारा दारुल इस्लाम बनायें। साथ अल्लाह ने कहा ''निस्ंसदेह काफ़िर तुम्हारे (ईमानवालों के) खुले दुश्मन हैं'' (४ः१०१, पृ. २३९)।

(ii) ''तुम पर (गैर-मुसलमानों से) युद्ध फर्ज़ किया गया है और वह तुम्हें अप्रिय है औरहो सकता है एक चीज़ तुम्हें बुरी लगे और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो, और हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें प्रिय हो ओर वह तुम्हारे लिए बुरी हो। अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।'' (२ : २१६, पृ. १६२)

(iii) ''हे नबी ! 'काफ़िरों' और 'मुनाफ़िकों' से जिहाद करो और उनके साथ सखती से पेश आओ। उनका ठिकाना 'जहन्नम' है ओर वह क्या ही बुरा ठिकाना है'' (९ः७३, पृ. ३८०)

(iv) ''किताब वाले' (ईसाई, यहूदी आदि) जो न अल्लाह पर 'ईमान' लाते हैं और न 'आख़िरत' पर और न उसे 'हराम' करते हैं जिसे अल्भ्लाह और उसके 'रसूल' ने 'हराम' ठहराया है और वे न सच्चे 'दीन' को अपना 'दीन' बनाते हैं, उनसे लड़ो यहाँ तक कि अप्रतिष्ठित होकर अपने हाथ से ज़िज़िया देने लगें।'' (९ः२९, पृत्र ३७२)।

(v) ''फिर हराम महीने बीत जाऐं तो मुश्रिकों (मूर्ति पूजकों) को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़द्यों और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तौबा कर लें और 'नमाज' क़ायम करें और 'जकात' दें तो उनका मार्ग छोड़ दो।'' (९ः५, पृ ३६८)।

(vi) ''निःसन्देह अल्लाह ने 'ईमान वालों से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो वे मारते भी हैं और मारे भी हैं और मारे भी जाते हैं। वह अल्लाह के ज़िम्मे (जन्नत का) एक पक्का वादा है कि 'तौरात' और 'इंजील' और कुरान में; और अल्लाह से बड़कर अपने वादे को पूरा करने वाला कौन हो सकता है ? ।'' (९.१११, पृ. ३८८)।

(vii) ''वही है जिसने अपने 'रसूल' को मार्गदर्शन और सच्चे 'दीन' (सत्य धर्म) के साथ भेजा ताकि उसे समस्त 'दीन' पर प्रभुत्व प्रदान करें, चाहे मुश्रिकों को यह नापसन्द ही क्यों नह हो।'' (९ः३३, पृत्र ३७३)।

(viii) इतना ही नहीं, जिहाद न करने वाले के लिए अल्लाह की धमकी भी है-'' यदि तुम (जिहाद के लिए) न निकलोगे तो अल्लाह तुम्हें दुख देने वाली यातनाएँ देगा और तुम्हारे सिवा किसी और गिरोह को लाएगा और तुम अल्लाह का कुछ न बिगाड़ पाओगे।'' (९ः३९, पृ. ३७४)।

उपरोक्त आयतों से सुस्पष्ट है कि ''जिहाद ''फी सबी लिललाह'', यानी ''अल्लाह के लिए जिहाद' का अर्थ है-१) गैर-मुसलमानों से युद्ध करना, उन्हें कत्ल करना और उनके धर्म को नष्ट करके सारी दुनिया में अल्लाह के सच्चे 'दीन' (धर्म) इस्लाम को स्थापित करना। (२) इसके लिए अल्लाह ने मुसलमानों की सम्पत्ति सहित उनकी जिन्दगी इस शर्त पर खरीद ली है कि यदि वे मारे गए तो उन्हें ''जन्नत' दी जाएगी। (३) गैर-मुसलमानों से युद्ध करना तुम्हारा फ़र्ज है चाहे तुम्हें बुरा ही क्यों न लगे।

अतः प्रत्येक मुसलमान का तन मन धन से गैर-मुसलमानों को इस्लाम में धर्मान्तरित करने और उनके देश को इस्लामी राज्य बनाने के लिए युद्ध करना ही 'जिहाद फी सबी, लिल्लाह' या 'अल्लाह के लिए जिहाद' का असली मतलब है।

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