Tuesday, February 1, 2011

हदीसों में जिहाद

हदीसों में जिहाद

इस्लाम में पैगम्बर मुहम्मद का स्थान

इस्लाम में पैगम्बर मुहम्मद प्रत्येक मुसलमान के लिए एक आदर्श व्यक्ति है-''निश्चय ही तुम लोगों के लिए रसूल में एक उत्तम आदर्श है।''

(३३ः२१, पृ. ७४८)।

मुहम्मद अल्लाह का सन्देशवाहक या रसूल है। इसलिए उसकी आज्ञा मानना अल्लाह की आज्ञा मानने के समान है और उसकी अवज्ञा करना अल्लाह की अवज्ञा करना है। देखिए प्रमाण:

(i) ''हे ईमान वालो ! अल्लाह का आदेश मानो और रसूल का आदेश मानो।'' (४ः५९, पृत्र २३२)।

(ii) ''(हे मुहम्मद) हमने तुम्हें लोगों के लिए 'रसूल' बनाकर भेजा है और (इस पर) गवाह की हैसियत से अल्लाह काफ़ी है। जिसने 'रसूल' का आदेश माना, वास्तव में उसने अल्लाह का आदेश माना है।'' (४ः७९-८०, पृत्र २३५)।

(iii) पैगम्बर मुहम्मद स्वयं कहता है ''जो कोई मेरी आज्ञा पालन करता है वास्तव में वह अललाह की आज्ञा का पालन करता है और जो कोई मेरी अवज्ञा करता है, वास्तव में वह अल्लाह की अवज्ञा करता है।'' (बुखारी, खं. ९ : २५१, पृ. १८९; माजाह, खं. ४ः२८५९, पृ. १९१)

अतः इस्लाम में पैगम्बर मुहम्मद का स्थान अल्लाह के बराबर है। मगर अल्लाह निाकार है और मुहम्मद साक्षात लोगों के बीच मौजूद है। इसलिए उसका आदेश अल्लाह के समान अपने आप पालनीय हो जाता है।


हदीसों में जिहाद

पैगम्बर मुहम्मद की कथनी, करनी, आचार-विचार, जीवन पद्धति ओर निर्णयों को, जो उसके साथियों ने देखा और सुना, के संग्रहों का नाम हीदस है। पैगम्बर मुहम्मद के कथनों और इन संग्रहों, दोनों के लिए हदीस शब्द का प्रयोग होता है। इस्लाम में, विशेषकर सुन्नी सम्प्रदाय में, इमाम बुखारी, मुस्लिम, माजाह, दाऊद, नासाई, और तिरमिज़ी की इन छः हरीसों को कुरान के समान प्रामाणिक माना जाता है क्योंकि ये पैगम्बर मुहम्मद के वचन हैं और प्रत्येक हीस में जिहाद सम्बन्धी सैकड़ों सन्देश हैं, जैसे :

(i) ''शाब्दिक रूप से जिहाद का अर्थ युद्ध, कठोर तथा श्रमसाध्य प्रयास करना है। इस्लामी परिप्रेक्ष्य में इसका अर्थ मूर्तीपूजकों के खिलाफ इस्लाम के लिए लड़ना है। व्यापक अर्थ में अल्लाह के मार्ग में किए जाने वाले सभी प्रयास जिहाद के अन्तर्गत आते हैं, जिनका उद्‌देश्य मज़हब का विस्तार करना है। यह युद्ध क्षेत्र? में लड़ाई करना, स्कूलों में शिक्षा देना, सार्वजनिक भाषण देना और इस्लाम पर साहित्य सृजन करना हो सकता है।'' (दाऊद, खं. २, नोट. १८०९, पृ. ६८४)

(ii) स्वयं पैगम्बर मुहम्मद ने भी यह कहा-''आप लोगों (ईमान लाने वालों) में से जो भी व्यक्ति कुछ भी बुराई देखें तो वह उसे अपने कर्म से दुरुस्त करें ओर यदि वह इसे दूर नहीं कर पाता है तो उसे चाहिए कि वह इसे अपनी वाणी से दूर करें तथा वह ऐसा भी करने में असमर्थ हो तो वह इसे अपने मन से दूर करें और यही जिहाद है।'' (मुस्लिम, खं. १ः७९-८०, पृ. ४०)।

(iii) ''मुहम्मद का कथन है कि अल्लाह के नाम पर और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो। जो इस्लाम में विश्वास न रखते हों उनके विरुद्ध युद्ध करो। पवित्र युद्ध करो।'' (मुस्लिम, खं. ३ः४२९३, पृ. ११३७)।

पैगम्बर ने कहा ''शासक चाहे सदाचारी हो या न हो, उसकी आज्ञानुसार जिहाद करना तुम्हारा अनिवाय्र कर्त्तव्य है।''

(दाऊद, खं. २ः२५२७, पृ. ७०३)।

(iv) पैगम्बर मुहम्मद का जिहाद के विषय में गैर-मुसलमानों के विरुद्ध आदेश है-''मुसलमान, गैर-मुसलमानों के सामने तीन शर्तें रखें; पहली-उनको इस्लाम कबूल करने को कहें, यदि वे इसे न मानें तो उनसे इस्लामी राज्य की अधीनता स्वीकारते हुए ज़िजिया टेक्स देने को कहें। यदि वे इन दोनों शर्तों को न माने तो उनसे जिहाद यानी सशस्त्र युऋ करो।'' (मुस्लिम खं. ३ः४२४९, पृ. ११३७; माजाह खं. ४ः२८५८, पु. १८९-१९०; दाऊद, खं. २ : २६०६, पृ. ७२२)।

(v) ''जिहाद, अल्लाह के बाद, सबसे उत्तम काम है''। (मुस्लिम, खं. १ः१५२, पृ. ७२२)।

(vi) ''जिहाद, अल्लाह के बाद, सबसे उत्तम काम है''। (मुस्लिम, खं. १ः१५२, पृ. ५९)। इसी प्रकार ''सर्वोत्तम जिहाद वह है जिसमें घोड़ा और सवार दोनों ही घायल हो जायें।'' (माजाह, खं. ४ : २७९४, पृ. १५७) तथा ''सर्वोत्तम जिहादी वह है जो अल्लाह के मजहब को बढ़ाने के लिए जिहाद करता है।'' (बुखारी, खं. ४ : ३५५, पृ. २२८)।

कुरान की तरह, हदीसों में भी विजित गैर-मुसलमानों के धन, सम्पत्ति व स्त्रियों पर विजेता मुसलमानों का अधिकार होगा, मारे जाने पर वे शहीद कहलायेंगे तथा उन्हें जन्नत मिलेगा जहाँ वे कम से कम बहत्तर युवा कुंवारी सुन्दरियों (हूरों) का पत्नी रूप में अनन्त काल तक भोग विलास का आनन्द लेते रहेंगे। इसके लिए उन्हें एक सौ पुरुषों के बराबर काम शक्ति दी जाएगी।

(बयात मुफ्ती जुबे, मैडिन्स ऑफ़ पैराडाइज़, अनवर शेख-जिहाद के प्रलोभन)।

हदीसों में न केवल युद्ध करने वालों, बल्कि जिहाद के लिए धन, हथियार, अन्य सामान की सहायता करने वाले, यहाँ तक कि सच्चे मन से जिहाद करने का संकल्प लेने वाले को भी जन्नत का आश्वासन दिया गया है। (मुस्लिम, खं. ३ः४६९५ पृत्र १२७२)। यह दूसरी बात है कि हदीवों के अनुसार शहीदों व जिहादियों को जन्नत क़ियामत (प्रलय) बाद ही मिलेगी (मुस्लिम, खं. ४ः६८५८, पृत्र १७९५; मिश्कत, खं. ४ः२३, पृत्र १६७) (पालीवाल, जिहादियों को जन्नत कियामत बाद)।

यहाँ तक कि ''पैगम्बर मुहम्मद पहले व्यक्ति होंगे जो क़ियामत (प्रलय) बाद ही मिलेगी (मुस्मि, खं. १ः३८४, पृ. १६११)। इसके अलावा जिहाद न करने वाले मुसलमानों को अल्लाह सखत सज़ा देगा।'' (मुस्लिम, खं. ३ः४६९६, पृ. १२७२; मिश्कत, खं. २ः३२, पृ. ३४८)। अतः हदीसों में भी गैर-मुसलमानों के लिए जिहाद का मतलब, इस्लाम और युद्ध में से एक को चुनना है।

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