हिंदू संस्कृति संस्कारों पर पलता व्यर्थ विवाद है,
निज जातिका, निज धर्म का, सम्मान क्या अपराध है?
हिंदुस्तान की इस धरती के हिंदू क्या संतान नहीं ?
हिन्दी,हिंदू, हिंदुत्व भला क्या इसकी पहचान नहीं ?
हिंदुत्व अमिट परिपाटी है हिन्दुस्तानी जन-जीवन की,
यहाँ जन्म लेने वालों पर माटी के ऋण के बंधन की।
हिंदुत्व न केवल आर्य धर्म यह सतत सनातन दर्शन है,
यह विश्व-सभ्यता का अग्रज मानवता का अंतर्मन है।
पूजा पद्धतियाँ भले भिन्न हों मन्दिर,मस्जिद,गुरुद्वारों में ,
हिंदुत्व विश्व-बंधुत्व बना पलता असंख्य परिवारों में।
उर्दू, उड़िया, असमी, पंजाबी, तमिल,तेलुगु, मलयाली,
मणिपुरी,मराठी, कन्नड़, सिन्धी,गुजराती, बंगला, नेपाली।
इस देश की सब भाषाओँ में हिंदुत्व उभर कर आता है,
गीता, रामायण ज्ञान-कथा का ही सागर लहराता है।
आए गए विदेशी कितने बहुत आक्रमण झेले हमने ,
पर हिंदुत्व मिटा पाने के उनके पूरे हुए न सपने।
कितना नर-संहार हुवा हम कई गुना फिर प्रगत हो लिए,
क्या हिंदुत्व मिटा पाए वे देश काल इतिहास खोलिए ।
मुघलों ने भी ध्वंस किया पर नहीं देश को बटने दिया ,
लदे ,भिडे पर साथ रहे सर कटे देश कटने न दिया।
सत्तालोलुप अपनों ने ही माँ के तन चीर फाड़ डाले,
घर फूँका घर के चिराग ने देश के टुकड़े कर डाले ।
गिरिजन,हरिजन, पिचादे-जन हिंदुत्व संस्कारी क्या नहीं ?
हनुमान, राघव, केशव के आदि-पुजारी वे क्या नहीं ?
जातिवाद का ज़हर घोलती राजनीति अभिशप्त हो रही,
अगले पिछड़े समीकरण में भारतीयता त्रस्त हो रही।
प्रस्तुत कैसी विडम्बना है कैसे जाल बिछाए हैं ?
हिंदुत्व प्रताड़ित करने को सत्ता ने नियम बनाए हैं।
तुलसी,सूर, कबीर आदि ने जन-मानस झकझोरे थे
कालजयी रचनाओं में आस्था के बीज बटोरे थे।
रहते समय न चेत सके जो फ़िर पीछे पछतायेंगे ,
जाग उठा हिंदुत्व कहीं तो भागे राह न पाएंगे ।
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